शब्द साइकोलॉजी का निर्धारण करते हैं ।
इन शब्दों का खेल बहुत मायने रखता है /कौनसे शब्द आपके बीच प्रचलित हैं , यही निर्धारित करेगा की आपकी साइकोलॉजी कैसे काम करेगी ।
ताक़त के प्रतीक दो ‘शब्द’ माने जाते हैं ।
झोटा और शेर ! देहाती परिवेश में झोटा शब्द ही प्रचलित हुआ करता था “क्योंकि झोटे और देहाती आदमी की तासीर एक सी ही होती है ।मस्ताना आचरण और हांगे की बावल पर भरोसा ।
झोटा अकेला लड़ने में विश्वास रखता है ।
फिर आती है , शहरी सभ्यता और एक का अनेक पर आधिपत्य ।यहाँ झोटों के बीच शेर शब्द का प्रचार किया जाता है – जंगल के राजा का प्रचार किया जाता है ! माने एक के अनेक पर राज को शेर के ज़रिए जस्टिफाई किया जाता है – जबकि शेर झोटे की तरह हांगे पर विश्वास नहीं करता वह झुंड और घात की लड़ाई लड़ता है !
शेर शब्द ग्रामीण है ही नहीं , ना ही शेर ग्रामीण मानसिकता में फिट बैठता –
आप पायेंगे कई मुल्कों के झंडे में , कई धर्मों या धार्मिक संगठनों के चिह्नों में , कई रियासतों के झंडों में शेर की तस्वीर होती है –
दुनिया को नियंत्रित करने वाली सीक्रेट सोसाइटीज के ऑकल्ट सिम्बल्स में भी आपको शेर की तस्वीर मिलेगी लेकिन झोटे की नहीं – क्योंकि झोटा ग्रामीण सभ्यता का प्रतिबिंब है जबकि शेर एक के अनेक पर आधिपत्य वाली शहरी सभ्यता का
व्यापारिक षड्यंत्रों में गुम हो चुके झोटे शब्द को ज़िंदा किया एक देहाती फ़रज़ंद ने , जिसका नाम था शुभदीप सिंह सिद्धू ।
आज म्हारी ताई ने जूनियर झोटे को जन्म दिया है , इसलिए इस शब्द की महत्ता को समझाना ज़रूरी था ।
आभार ।
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