घिया (लॉकी)
बुआई ग्रीष्म कालीन फसल के लिये फरवरी – मार्च व वर्षा कालीन फसल की जून-जुलाई में करना उचित है । बीमारियों की रोकथाम के लिये बीजों को बोने से पूर्व कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम प्रति किलो बीज के हिसाब से उपचारित कर बोना चाहिये,
खरीफ सीजन में
इस खरीफ सीजन में किसान लौकी की खेती कर अच्छा उत्पादन और लाभ दोनों कमा सकते हैं, जानिए इसकी खेती के लिए कैसी होनी चाहिए किस्म और मिट्टी ।
लौकी की खेती
लौकी की खेती एक बहुत ही अच्छी खेती है, इसमें किसान को कम मेहनत में ज्यादा फायदा होता है, ज्वार, बाजरा, गेहूं, धान, जौ, आलू, चना, सरसों की अपेक्षा सब्जियों की खेती में कमाई ज्यादा है, लेकिन ये लाभ काफी कुछ इस बात पर निर्भर करता है, कि आप खेती किस तकनीकी से करते हैं, जहां पहले किसान धान, गेहूं और मोटे अनाजों की पैदावार को अपनी आय का एक मात्र जरिया मानते थे…. वहीं वर्तमान समय में किसानों ने इस सोच से आगे बढक़र आलू, टमाटर, बैंगन, मिर्च, तोरई, कद्दू, खीरा आदि जैसी सीजनल फसलों की खेती कर कमाई का जरिया ही नहीं बनाया है बल्कि इनकी खेती से पूरे साल लाखों रुपये की कमाई भी कर रहे हैं. किसान लौकी की खेती कर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं …. लौकी सामान्य तौर पर दो आकार की होती हैं, पहली गोल और दूसरी लंबी वाली, गोल वाली लौकी को पेठा तथा लंबी वाली लौकी को घीया के नाम से जाना जाता हैं….
लौकी का इस्तेमाल सब्जी के अलावा रायता और हलवा जैसी चीजों को बनाने में भी किया जाता हैं, इसकी पत्तिया, तने व गूदे से अनेक प्रकार की औषधियां बनायी जाती है, पहले लौकी के सूखे खोल को शराब या स्प्रिट भरने के लिए उपयोग किया जाता था, यह हर सीजन में मिलने वाली सब्जी हैं, इस सब्जी की मांग बाजार में हर समय काफी बड़े स्तर पर रहती है, इसे ध्यान में रखकर किसान इस खरीफ सीजन में लौकी की आसान तरीके से खेती कर अच्छा उत्पादन और मुनाफा दोनों ले सकते हैं….।
देश में लौकी की खेती
देश में लौकी की खेती को किसी भी क्षेत्र में सफलतापूर्वक की जा सकती है, इसकी खेती उचित जल निकासी वाली जगह पर किसी भी तरह की भूमि में की जा सकती है, प्रन्तु उचित जल धारण क्षमता वाली जीवाश्म युक्त हल्की दोमट भूमि इसकी सफल खेती के लिए सर्वोत्तम मानी गयी ह, लौकी की खेती में भूमि का पी.एच मान 6 से 7 के मध्य होना चाहिए…..
लौकी एक ऐसी
लौकी एक ऐसी कद्दूवर्गीय सब्जी हैं, जिसकी फसल वर्ष में तीन बार उगाई जाती हैं, खरीफ, रबी सीजन में लौकी की फसल ली जाती है,ज़्यादा इसकी की बुवाई मध्य जनवरी, खरीफ मध्य जून से प्रथम जुलाई तक और रबी सितंबर अंत से अक्टूबर के पहले सप्ताह तक लौकी की खेती की जाती है, ज़्यादा की अगेती बुवाई के लिए मध्य जनवरी में लौकी की नर्सरी की जाती है….
लौकी के पौधों
लौकी के पौधों को अधिक सिंचाई की ज़रूरत्त नहीं होती है,यदि रोपाई बीज के रूप में की गयी है. तो बीज को अंकुरित होने तक नमी बनाये रखना होता है, यदि रोपाई पौधों के रूप में की गयी है, तो पौधे रोपाई के तुरंत बाद खेत में पानी लगा देना चाहिए, बारिश के मौसम में जरूरत पड़ने पर पौधों की सिंचाई करनी चाहिए, बारिश के मौसम के बाद इसकी सप्ताह में एक बार सिंचाई करते रहना चाहिए, अधिक गर्मियों के मौसम में इन्हे सिंचाई की अधिक आवश्यकता होती है, इसलिए इन्हे 4 से 5 दिन के अंतराल में पानी देते रहना चाहिए, जिससे पौधों में नमी बनी रहे, और जब पौधों पर फल बनने लगे तब हल्की-हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए जिससे फल अधिक मात्रा में हो…।
खेत में रोपाई
इसके बीजों की खेत में रोपाई के लगभग 48 से 58 दिनों के बाद इसकी फसल पैदावार देना आरंभ कर देती है, जब इसके फल सही आकार और गहरा हरा रंग में ठीक-ठाक प्रकार का दिखने लगे तब उनकी तुड़ाई कर लें, फलों की तुड़ाई डंठल के साथ करें. इससे फल कुछ समय तक ताजा बना रहता है, फलों की तुड़ाई के तुरंत बाद उन्हें पैक कर बाजार में बेचने के लिए भेज देना चाहिए, लौकी की फसल में पैदावार की बात करें, तो इसकी खेती कम खर्च में अच्छी पैदावार देने वाली खेती है….।
Khetikare
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